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मै उस मज़बूरी के बारे में सोच रहा हु की कैसे कोई अपनी ही मौत का इंतजार करते हुए इत्मीनान से रातें काट सकता है, जबकि ऐसे किसी मामले में किसी को भी रियायत नहीं दी गई है उन १३ महीनो का कैसा कस्टकारी सफर होगा जिंदगी का| सोच कर भी आत्मा काँप जाती है |
कभी सोचा हैं उस माँ-बाप, पत्नी और बच्चों के बारे में जिनका बेटा, पति और बाप मौत की कगार पर खड़ा है कितनी लाचारी के वो उन्हें बचाने के लिए न तो कुछ कर हीं सकते हैं ना ही उसे सांत्वना दे सकते हैं |
और मौत के मुहाने पर खड़ा वो शख्श बाप के बुढ़ापे की लाठी बनना तो दूर वो अपनी माँ की गोद में सर रख कर रो भी नहीं सकता है ना पत्नी को गले लगाकर, बच्चों को संभालने की हिदायत ही दे सकता है, कैसी है ये लाचारी |
जी हाँ मै कुलभूषण जादव की ही बात कर रहा हूँ |
वो कैसे अपने आप को दिलासा देता होगा की शायद बच जायेगा वो, जहाँ का भुत (काल) खुद चीख चीख के कह रहा है की हम तो जेबकतरों को भी फांसी पर लटका देते हैं साहब | हम तो अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री को भी पर्याप्त सबूत न होने पर भी मौत की सजा से नवाजते हैं | अभी पिछले ही साल में हमने ३२४ लोगों को मौत के घाट उतार दिया फांसी की सजा के नाम पर, जिसमे कई तो मासूम, गरीब, बिकलांग और तो और उसमे बहुत सारे मानसिक तौर पर स्वस्थ भी नहीं थे|
कैसा है ये देश, कैसे हैं वहां के वासिंदे और कैसी है ये हुकूमत जिसने ये जानने की भी कोशिश नहीं की कौन है वो असल में कहा का रहने वाला है क्या उसका काम है|
मार्टिन लूथर किंग द्वारा कही गई ये पंक्तियाँ …
Injustice anywhere is a threat to justice everywhere.
अगर कही पर भी किसी के साथ भी किया गया अन्याय संसार में हर जगह किये जाने वाले न्याय के लिए खतरनाक है तो क्यों नहीं आते वो सारे संसार के रहबर जो न्याय की वकालत करते हैं हमारे कुलभूषण जादव को बचने के लिए आवाज़ उठाने, कम से कम हमे ये तो एहसास हो जायेगा की अभी भी संसार में सच्ची न्याय प्रक्रिया को सलामत रखने के लिए कुछ लोग हैं लड़ने वाले |
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