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मै गर्वित हुआ उस दिन जिस दिन मैंने सोशल मीडिया पर वायरल वो विडिओ देखा जिसमे कश्मीरी (देशभक्त जवान), भारत के सैनिकों (बलात्कारी) पर थप्पड़ों की बारिश कर रहे थे, और हथियारों से लदे वो सैनिक कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे बल्कि खुद को बचाने का प्रयास कर रहे थे |
खुद को बचाने का प्रयास कर रहे थे ठीक उसी तरह जैसे एक माँ अपने ही बच्चे का प्रहार झेलती है स्तनपान कराते समय जब उसका ही बच्चा पैरों से उस पर करता है वो उसकी प्रतिक्रिया नहीं देती बल्कि खुद को उसके प्रहार से बचाने का प्रयास करती है जबकि उसी बच्चे पर कोई प्रहार करे तो वो ही लात खाने वाली माँ शेरनी बनकर उसे बचाटी है|
धन्य है वो सरकार जिसमे इतने साहसिक और धैर्यशील सिपाही मौजूद हैं श्रीमान, जो माँ की तरह ममता के साथ साथ काली की तरह दुश्मनों का संघार करने का भी माद्दा रखते हैं|
उन्ही कश्मीरी देशभक्तों को बचाने के लिए दुश्मनो की तरफ से चलने वाली गोली को अपने सीने पर झेलने को आतुर, और प्राकृतिक आपदा के समय खुद को खतरे में डालकर उन्ही देशभक्त कश्मीरियों को बचाने के लिए रात दिन की परवाह किये बिना खुद को झोंक देने वाले सिपाहियों के साथ क्या ठीक हो रहा है?
क्या नहीं आया है समय, की भारत सरकार को उन्हें बन्दुक देने के साथ साथ उसे गलत लोगों पर चलाने का अधिकार भी दे देना चाहिए?
क्या नहीं आया है समय,की भारत सरकार उन्हें देश के साथ साथ खुद की भी इज्जत पर हाथ डालनेवाले को पर्याप्त सजा देने का अधिकार भी दे देना चाहिए?
क्या नहीं हैं वो (सिपाही) भी हमारे सामान ही भारत के नागरिक जिनको भी अधिकार हो आत्मा रक्षा में विरोधी पर गोली दागने का?
और कहा गए वो सारे जाग्रत देश के नागरिक जिन्हे सिपाहियों की पतली दाल सताती थी क्यों नहीं खोलते मुँह अपना आज की ये भी गलत हो रहा है उन वतन के रखवालों के साथ ?
अब आ गया है समय उन सभी देश द्रोहियों को सबक सीखने का…
जो कश्मीर में जवानो पर पत्थर और थप्पड़ों की बरसात करते हैं,
जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ” अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं का नारा लगाते हैं”
जो भारत से नहीं भारत में आजादी की मांग करते हैं?
कविता तिवारी के इन पंक्तियों की तर्ज पर ही हमे अपने बच्चों में ये संस्कार देने होंगे ….
फिर देखिये हमारे घरों में ऐसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारे लगाने वालों जैसे गद्दार पैदा नहीं होंगे|
मैं भारत वर्ष का हरदम अमिट सम्मान करता हूँ
यहाँ की चंदनी मिट्टी का ही गुणगान करता हूँ,
मुझे चिंता नहीं है स्वर्ग जाकर मोक्ष पाने की,
तिरंगा हो कफ़न मेरा, बस यही अरमान रखता हूँ।
सुशील पांडेय
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