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कब बंद होगी ये सदियों से चली आ रही सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्षी ताकतों के बीच की इंसानियत को लहूलुहान कर देने वाली लड़ाई ?
मुझे इस बात का पश्चाताप भी होता है कि कैसे कोई किसी धर्म विशेष के रहबर, राहजन बनकर सैकड़ो लोगों के खून का प्यासे हो जाते हैं सिर्फ इस बात को लेकर कि मेरा इष्ट तेरे इष्ट से श्रेष्ठ हैं?
कैसी है ये लड़ाई जिसमे हम किसी निर्जीव की श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए, अपने भाई-मित्र का कत्ल कर देते हैं जो किसी दूसरे पंथ को मानने वाला या फिर दुसरे धर्म का अनुयायी है?
वाह! क्या बात है? मै आज तक ये नही समझ पाया असल मे किस धर्म के धार्मिक पुस्तकों मे स्पष्ट किया गया है कि स्वधर्म की रक्षा परधर्म के अनुयायियों को खत्म करने से होता है?
हम ये क्यों नही समझ पा रहे हैं कि….
कोई जर्रा नही ऐसा जहां पर रब नही रहता,
लड़ाई वे ही करते हैं जिन्हे मतलब नही होता।
ओ मन्दिर और मस्जिद के लिए दिवानगी वालों,
वतन से बढ़कर दुनिया मे कोई मजहब नही होता।।
हम संसार के सर्वाधिक लोकप्रिय देशो मे से एक हैं, संसार की बेहद शक्तिशाली मुल्को की सूची मे शुमार करने वाले मुल्क भी हमे अपने यहां आने के लिए दावत देते नही थक रहे हैं और हम हिन्दू मुस्लिम के झगड़े से ही बाहर नही निकल पा रहे हैं।
अच्छा ये बताइए कैसे कोई भी धर्म खुद को महान बनाने के लिए, दुसरे संप्रदाय को खत्म करने की इजाजत दे सकता है।
अगर ऐसा है तो हमे किनारा कर लेना चाहिए उस धर्म या संप्रदाय से।
धर्म तो साथ साथ चलना सिखाता है साथ मिलकर मातृभूमि की सेवा करना सिखाता है जैसे ….
अब भारत मे कभी नही रमज़ान राम मे पंगा हो,
ख्वाहिश है कि बजूं करूं तो लोटे मे जल गंगा हो।
यदि इच्छा हो तो वो भी उठा ले मगर शर्त है ये मौला,
जब भी उठे जनाजा मेरा तन पर कफ़न तिरंगा हो।।
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