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“पैसों की कीमत कितनी बढ़ा दी है व्यापार ने,
कि जिंदगी भी सस्ती हो चली है संसार में,
सिक्के लेकर सोचा था खरीदेंगे खिलौने पर,
सच में मैंने सांसों को बिकते देखा है बाजार में।”
सच में बहुत हृदय विदारक घटना घटित हुई गोरखपुर के अस्पताल में, जहां आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी का बकाया 64 अबोध बच्चों ने अपनी जान देकर चुकाया। जहां सारा देश स्तब्ध है, वहीं सूबे के स्वास्थ्य मंत्री पिछले साल में हुई बच्चों की मौतों का औसत बता रहे हैं।
हुजूर जरा बताइए, क्या सुनने की कोशिश की थी आपने उन बच्चों की कम होती सांसों से निकलने वाली घरघराहट को? क्या आपने उन बच्चों की सांसों की कमी के कारण होने वाली तड़प को महसूस करने की कोशिश की थी? क्या आपने कान लगाने की कोशिश की थी, उन बच्चों की मौत में तब्दील होती हिचकियों से? मौतों का औसत बताने से पहले।
श्रीमान् मुझे पता है कि आप पूरे बहुमत के साथ विधानसभा में बैठे हैं और आपको भी यह पता है कि आपका कोई कुछ नहीं कर सकता, पर मंत्री जी इंसानियत को कम से कम शर्मसार मत कीजिये। अभी दो दिन पहले ही तो मुख्यमंत्री जी उसी अस्पताल के अगले दरवाजे पर डाॅक्टरों की पीठ थपथपा रहे थे। क्या सच में उन्हें नहीं पता था कि पिछले दरवाजे से बच्चों की लाशें कब्रिस्तान को सप्लाई हो रही हैं।
क्या किसी ने सच में उन्हें नहीं बताया आॅक्सीजन की कमी के बारे में। अगर नहीं भी बताया था तो भी उस आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के मालिक में इतनी हिम्मत कहां से आई कि 64 जिंदगियां उसे सस्ती लगीं 68 लाख के मुकाबले।
कश्मीरी पंडितों और नाॅर्थ ईस्ट के आदिवासियों के लिए तड़पकर लोकसभा मे वबाल कर देने वाले योगी जी आप इस भ्रम में क्यों हैं कि ये 64 मौतें गन्दगी के कारण हुई हैं। क्या आपको सच में लगता है कि एक भी बच्चे की मौत आॅक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई?
गलती को छुपाइये मत महाशय, उसे सुधारें और आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के मालिक को पकड़कर ऐसी सजा दें कि उसके साथ-साथ चिकित्सा से संबंधित व्यापार करने वाली हर कम्पनी को यह समझ आये कि जीवन सर्वोपरि है। गोरखपुर में हुए इस हादसे पर ये पंक्तियां जुबां पर आ जा रही हैं…
फूल देखे थे अक्सर ज़नाज़ों पर मैंने,
कल गोरखपुर में फूलों के ज़नाज़े देखे।
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