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इतना महिला सम्मान तो हमारे यहां राक्षस भी करते हैं

Social Issues
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रिश्तों की अहमियत को समझने व हर एक रिश्ते की सीमाओं की कद्र को सलामत रखने की हमारी 5000 वर्ष पुरानी रीतियों को इतना तार-तार कर दिया हमने कि हमारे देश की महारानी लक्ष्मीबाई तरह की वीरांगनायें तक ये कहने को मजबूर होने लगीं कि… (लता हया के शब्दों में)


women


अब केवल अनजान नहीं अपनों से भी डर लगता है,
चाचा, ताऊ, मामा, मौसा, जीजा तक से खतरा है।
उम्र कोई भी हो बस केवल औरत होना काफी है,
जिसको देखो नीयत खोटी नज़रों मे नापाकी है।।


यह वही महान देश है, जहां पर माँ सीता का अपहरण अपना बना लेने के उद्देश्य से किया गया पर माता सीता की इच्छा के विरुद्ध जाने का ख्याल तक राक्षसराज रावण के मन में भी नहीं आता है। इतना महिला सम्मान तो हमारे यहां राक्षस भी करते हैं।


यह वही महान देश है, जहां एक महिला की इज्जत पर हाथ डालने वाले दुस्साहसी दुशासन के वंश को खत्म कर देने वाला इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध कर दिया जाता है और महिला सम्मान में हम अपने ही परिवार के १०० से ज्यादा सदस्यों को मौत की सजा सुना देते हैं।


यह वही महान देश है, जहां रानी पद्मावती को अपवित्र इरादे से खिलजी द्वारा बुलाने पर दो वीर गोरा और बादल अपने ३५०० सैनिकों के साथ बिना सर, धड़ से ही लड़ते रहने की कसम के साथ विशाल शाही सेना से भिड़कर मौत को गले लगाना पसंद करते हैं।


क्या हो गया हमारी अंतरात्मा को, क्यों हम आत्मशून्य होते जा रहे हैं। १६ दिसंबर २०१२ का दामिनी काण्ड तो शायद ही कोई भूल पाएंगे कभी। इस दुर्दांत व विभत्स घटना ने महान भारतीय सभ्यता का मुंह काला कर दिया। क्या हो गया है हमारी भारत की धरती को, अत्यंत संस्कारशील नस्लें निकालने वाली उर्वरा से परिपूर्ण वसुधा के गर्भ से ये कंटीली झाड़ियां क्यूं निकलने लगीं। क्यों कवियत्री पद्मिनी को कहना पड़ता है कि-


घर से बाहर जब निकलती हूं सिहर जाती हूं मैं,
माँ न हो गर साथ मेरे बहुत डर जाती हूं मैं।
एक सीटी, एक बोली और एक मैली सी नज़र,
जब कभी उठती है सौ-सौ मौत मर जाती हूं मैं।।


इन सबके जिम्मेदार हम हैं और हम ही खराब कर रहे हैं आने वाली नस्लों को। तो आइए हम सब कसम खायें कि अगर नस्लों को हमने बिगाड़ा है, तो सही दिशा भी हम ही दिखायेंगे। हम सिखायेंगे उन्हें एक नारी का सम्मान करना, एक माँ, एक बहन, एक बेटी और एक प्रेमिका तौर पर।

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